श्रीमाँ पुराने वस्त्रों का रफ़ू कराके तथा पैबंद लगवाकर उपयोग करती थी। जो रुमाल फट जाते या आश्रम में इधर-उधर पड़े हुये मिलते उनकी मरम्मत कराने के बाद उन्हें धुलवा कर वे स्वयं उनका उपयोग करती थी यद्यपि उनके पास अनेक सुंदर रुमाल थे ।

दर्शन के समय साधक और भक्त श्री माँकी गोद में सिर रखते थे। उनके बालों में लगे तेल से अपने गाउन की रक्षा करने के लिये श्रीमाँ अपनी गोद में एक रुमाल बिछा लिया करती थीं। एक बार श्रीमाँ की सखी और शिष्य दत्ता ने उन्हें एक रुमाल दिखाते हुए कहा, “मधुर माँ, देखिये इस पर इतने पैबंद लगे हैं तथा इतनी जगह रफ़ू किया गया है कि मूल कपड़ा तो इसमें दिखाई ही नहीं पड़ रहा । यह अब आप के योग्य नहीं हैं । ” यह कहकर दत्ता ने रुमाल एक ओर रख दिया । श्रीमाँ तेजी से अपनी कुर्सी से उठीं और रुमाल को उठाते हुए बोलीं  “इस रुमाल ने वर्षों तक मेरी सेवा की हैं और तुम चाहती हो मैं इसका परित्याग कर दूँ ?”

(यह कहानी मुझे स्वर्णा दीदी ने सुनाई थी )

संदर्भ : श्रीअरविंद एवं श्रीमाँ की दिव्य लीला 

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