श्रीकृष्ण के प्रति उन्मुखता बाधा नहीं है

मैंने सोचा कि मैं पहले ही तुम्हें बता चुका था कि कृष्ण की ओर तुम्हारी उन्मुखता बाधा नहीं है। जो भी हो, मैं तुम्हारे प्रश्न के उत्त्तर में इसका दृढ़तापूर्वक समर्थन करता हूँ । यदि हम इस पर विचार करें कि जब उन्होंने मेरी अपनी साधना में ही इतनी बड़ी और सचमुच प्रबल भूमिका निबाही तब यह बड़ी विचित्र बात होगी कि तुम्हारी साधना में उनकी भूमिका को आपत्तिजनक माना जाये। सम्प्रदायवाद मत और कर्मकाण्ड आदि से सम्बंधित होता है, आध्यात्मिक अनुभूति से नहीं। कृष्ण पर एकाग्रता इष्टदेवता के प्रति आत्म-समर्पण है। यदि तुम कृष्ण को प्राप्त कर लेते हो. तब तुम भगवान् को प्राप्त कर लेते हो। यदि तुम अपने-आपको उन्हें समर्पित कर सकते हो तब तुम अपने-आपको मुझे ही अर्पित करते हो । तदात्म प्राप्त करने की तुम्हारी असमर्थता इसलिए हो सकती है क्योंकि तुम भौतिक पक्षों को चेतन या अचेतन रूप से आवश्यकता से अधिक महत्त्व दे रहे हो ।

सन्दर्भ : श्रीअरविन्द अपने विषय में 

शेयर कीजिये

नए आलेख

रूपांतर का मार्ग

भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…

% दिन पहले

सच्चा ध्यान

सच्चा ध्यान क्या है ? वह भागवत उपस्थिती पर संकल्प के साथ सक्रिय रूप से…

% दिन पहले

भगवान से दूरी ?

स्वयं मुझे यह अनुभव है कि तुम शारीरिक रूप से, अपने हाथों से काम करते…

% दिन पहले

कार्य के प्रति मनोभाव

अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…

% दिन पहले

चेतना का परिवर्तन

मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…

% दिन पहले

जीवन उत्सव

यदि सचमुच में हम, ठीक से जान सकें जीवन के उत्सव के हर विवरण को,…

% दिन पहले