… श्रीकृष्ण के पास सीधा जाना सुरक्षित अथवा आसान नहीं है: यह कभी-कभी भीषण रूप से खतरनाक हो सकता है, यदि साधक में कुछ ऐसी चीज हो जो उसकी मनोवृत्ति की शुद्धता तथा एकनिष्ठता के बीच हस्तक्षेप करती हो। वैसी अवस्था में कोई भी अनुचित कामना, दम्भ, घमण्ड, वासनात्मक अशुद्धता, महत्त्वाकांक्षा या कोई और सुस्पष्ट दौर्बल्य साधना में गम्भीर विकृति का मार्ग खोल सकता है जो अनुचित दिशाओं में जा सकता है, विघटन या विध्वंस, यहां तक कि आध्यात्मिक सर्वनाश में परिणत हो सकता है। श्रीकृष्ण का अपना प्रभाव अनुचित प्रभाव नहीं हो सकता, यदि यह वास्तव में उन्हीं का है, किन्तु किसी अन्य प्रभाव को उनका प्रभाव समझ कर स्वीकार कर लेने की भूल लोग आसानी से कर बैठते हैं। विशेषकर, वे प्रेम तथा सौन्दर्य तथा आनन्द के प्रभु हैं, और मनुष्यों के लिए, जो हमेशा इन चीजों की खोज में अनुचित दिशा में चले जाते हैं और उनकी खोज में भी अनुचित मागों में भटक जाते हैं, कुछ भी आसान नहीं है। यह अनुभव निश्चय ही बहुत से कारणों में से एक रहा होगा कि क्यों ऋषिगण गुरु के माध्यम से इस पथ पर जाने के लिए जोर डालते हैं और कहते हैं कि श्रीकृष्ण को पाना अन्यथा सम्भव नहीं है। यही कारण है कि वे वैराग्य पर, मानव प्रकृति के मान्य
लक्ष्यों व उद्देश्यों से अनासक्त होने पर जोर डालते हैं और इन्हें आवश्यक समझते हैं। यह भी एक कारण है कि क्यों श्रीकृष्ण तब तक प्रकट होना
पसन्द नहीं करते जब तक उनके लिए भूमि साफ-सुथरी न हो जाये! किसी शक्ति या प्रभाव का हस्तक्षेप-जो अपने को कृष्ण के समान प्रस्तुत करे,
उनके रूप या वाणी का भी अनुकरण करे-इसे स्वीकार कर लिये जाने पर व्यक्ति के लिए यह घातक होगा। परन्तु उनकी वास्तविक अभिव्यक्ति
भी किसी व्यक्ति में, जो अभी इसके लिए तैयार नहीं है, अस्तव्यस्तता ला सकती है। व्यक्ति को इन खतरों से सावधान रहना होगा और केवल गुरु
ही उनके विरुद्ध ढाल का काम कर सकते हैं।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
(चित्र : ऋतम द्वारा)
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