इस आश्रम की स्थापना का उद्देश्य वह नहीं हैं जो साधारणतया ऐसी संस्थाओं की स्थापना का हुआ करता है । संसार को त्यागने के लिए नहीं, बल्कि एक दूसरे आकार और प्रकार के जीवन के विकास के लिए अभ्यास के क्षेत्र तथा केंद्र के रूप में इसका निर्माण हुआ है। यह जीवन अंत में उच्चतर आध्यात्मिक जीवन को मूर्तिमान करेगा। ऐसा कोई सामान्य नियम नहीं है कि किस अवस्था में कोई व्यक्ति साधारण जीवन को छोड़कर इसमें प्रवेश कर सकता है । प्रत्येक प्रसंग में यह व्यक्तिगत आवश्यकता और प्रेरणा और इस ओर पग उठाने की सम्भावना या औचित्य पर निर्भर करता है ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…