इस आश्रम का निर्माण आम तौर पर ऐसी संस्थाओं के लिए निर्धारित एक-समान उद्देश्य की अपेक्षा अन्य उद्देश्य के साथ किया गया है जो संसार के त्याग के लिए नहीं है । किन्तु इसका निर्माण जीवन के एक अन्य प्रकार तथा रूप के विकास के लिए अभ्यास या साधना के एक केंद्र तथा एक क्षेत्र के रूप में किया गया है। जीवन का यह रूप अंतिम चरण में एक उच्चतर आध्यात्मिक चेतना द्वारा परिचालित होगा तथा आत्मा के एक महत्तर जीवन को साकार करेगा ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)
भगवान को अभिव्यक्त करने वाली किसी भी चीज को मान्यता देने में लोग इतने अनिच्छुक…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…
मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…
श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…