श्रद्धा को पाने का तरीका


महर्षि श्रीअरविंद अपने कक्ष में

श्रद्धा तथा बाकी सभी चीजों को पाने का तरीका बस यही है कि उन्हें पाने के लिए दढ़ाग्रह के साथ लगे रहो और जब तक ये तुम्हें हस्तगत न हो जायें न कभी ढीले पड़ो और न ही उदासी के घेरे में फंसो-केवल इसी एक तरीके से इस जगत् में हर एक चीज तब से प्राप्त की गयी है जब से इस पर चिन्तनशील तथा अभीप्सा करने वाले प्राणियों ने पदार्पण किया। सच्चा तरीका यह है कि हमेशा, हमेशा ‘प्रकाश’ के प्रति खुले रहो और अन्धकार की तरफ पीठ कर लो। उन सभी आवाजों के प्रति एकदम बहरे बन जाओ जो किसी जिद्दी की तरह लगातार चिल्लाती रहती हैं, “तुम यह नहीं कर सकते, तुम यह नहीं करोगे, तुम इसे करने में पूरी तरह असमर्थ हो, तुम तो बस एक सपने की कठपुतली हो।”-क्योंकि ये उन शत्रुओं की आवाजें हैं जो अपने कर्कश शोर-शराबे से भागवत परिणामों को आने से रोकते हैं और अगर कहीं तुम उन पर जरा भी ध्यान दे दो और परिणाम न आयें तो वे अपने सिर विजय का सेहरा बांध तुम्हारी खिल्ली उड़ाते हैं। यह तो सर्वविदित है कि इस प्रयास में पग-पग पर कठिनाई का सामना करना होता है, लेकिन कठिनाई पर असम्भव का बिल्ला नहीं लग जाता-हमेशा कठिन चीज को ही सिद्ध किया जाता है और पृथ्वी के इतिहास में जो कुछ मूल्यवान् की श्रेणी में आता है वह कठिनाइयों पर विजय पाने का ही प्रतीक है। आध्यात्मिक प्रयास के लिए भी यही सत्य ठहरता है।

संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र 


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