श्रद्धास्पद वस्तु

अधिकतर मनुष्यों की आध्यात्मिक उन्नति बाह्य आश्रय की, अर्थात् उनसे बाहर विद्यमान किसी श्रद्धास्पद वस्तु की अपेक्षा करती है। उन्हें अपनी उन्नति के लिए ईश्वर की बाह्य मूर्ति या मानव-रूप प्रतिनिधि-अवतार, पैगम्बर या गुरु-की आवश्यकता होती है। अथवा उन्हें इन दोनों की ही
आवश्यकता होती है और दोनों को ही वे अंगीकार करते हैं। मानव आत्मा की आवश्यकता के अनुसार भगवान् अपने-आपको देवता, मानवरूपी भगवान या सीधी-सादी मानवता के रूप में अभिव्यक्त करते हैं और अपनी प्रेरणा का सञ्चार करने के लिए, साधन के तौर पर, उस घने परदे को
प्रयोग में लाते हैं जो देवाधिदेव को अति सफलतापूर्वक छिपाये रहता है।

संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र 

शेयर कीजिये

नए आलेख

मेरी भेंट को अस्वीकार न कर

. . . (हे प्रभो!)  तू यह निश्चय कब करेगा कि इस सारे प्रतिरोध के…

% दिन पहले

एक विशेष संबंध

बहुत समय पहले श्रीअरविन्द ने आश्रम में हर जगह यह अनुस्मारक लगवा दिया था जिसे…

% दिन पहले

भगवान को पाना

मधुर माँ, सचमुच "भगवान को पाने" का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है अपने अन्दर…

% दिन पहले

अतिमानस का द्वार

केवल अपने लिए अतिमानस को प्राप्त करना मेरा अभिप्राय बिल्कुल नहीं है  - मैं अपने…

% दिन पहले

जल्दी सोना और जल्दी उठना

मधुर माँ , जल्दी सोना और जल्दी उठना क्यों ज्यादा अच्छा है ? सूर्यास्त के…

% दिन पहले

पाप का अस्तित्व

परम प्रभु के लिये पाप का अस्तित्व ही नहीं है - सभी दोष सच्ची अभिप्सा…

% दिन पहले