अधिकतर मनुष्यों की आध्यात्मिक उन्नति बाह्य आश्रय की, अर्थात् उनसे बाहर विद्यमान किसी श्रद्धास्पद वस्तु की अपेक्षा करती है। उन्हें अपनी उन्नति के लिए ईश्वर की बाह्य मूर्ति या मानव-रूप प्रतिनिधि-अवतार, पैगम्बर या गुरु-की आवश्यकता होती है। अथवा उन्हें इन दोनों की ही
आवश्यकता होती है और दोनों को ही वे अंगीकार करते हैं। मानव आत्मा की आवश्यकता के अनुसार भगवान् अपने-आपको देवता, मानवरूपी भगवान या सीधी-सादी मानवता के रूप में अभिव्यक्त करते हैं और अपनी प्रेरणा का सञ्चार करने के लिए, साधन के तौर पर, उस घने परदे को
प्रयोग में लाते हैं जो देवाधिदेव को अति सफलतापूर्वक छिपाये रहता है।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…
... सामान्य व्यक्ति में ऐसी बहुत-से चीज़ें रहती हैं, जिनके बारे में वह सचेतन नहीं…
भगवान मुझसे क्या चाहते हैं ? वे चाहते हैं कि पहले तुम अपने-आपको पा लो,…
सूर्यालोकित पथ का ऐसे लोग ही अनुसरण कर सकते हैं जिनमें समर्पण की साधना करने…
एक चीज़ के बारे में तुम निश्चित हो सकते हो - तुम्हारा भविष्य तुम्हारें ही…