मैं तुम्हें एक चीज की सलाह देना चाहती हूँ। अपनी प्रगति की इच्छा तथा उपलब्धि की अभीप्सा में इसका ध्यान रखो कि कभी शक्तियों को अपनी ओर मत खींचो। अपने-आपको दे दो, निरंतर आत्म-विस्मृति द्वारा जितनी नि:स्वार्थता तुम प्राप्त कर सकते हों उतने निःस्वार्थ-भाव से अपने-आपको खोलो, अपनी ग्रहणशीलता को जितना अधिक हो सकें बढ़ाओ, परन्तु ‘शक्ति’ को अपनी ओर खींचने की कभी कोशिश मत करो, क्योंकि खींचने की इच्छा करना ही एक खतरनाक अहंकार है । तुम अभीप्सा कर सकते हो, अपने-आपको खोल सकते हो, अपने-आपको दे सकते हो पर लेने की इच्छा कभी मत करो । जब कुछ बिगड़ जाता है तो लोग ‘शक्ति’ को दोष देते हैं, पर इसके लिये उत्तरदायी शक्ति नहीं है; यह पात्र की महत्वाकांक्षा, अहंकार, अज्ञान और दुर्बलता है जो उत्तरदायी है ।
उदारता एवं पूर्ण नि:स्वार्थता के साथ अपने-आपको दे दो और अधिक गहरे अर्थ में तुम्हारे साथ कभी कुछ बुरा नहीं होगा । लेने की कोशिश करो और तुम खाई के मुंह पर होंगे ।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५७-१९५८
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