(कृष्ण का नृत्य, काली का नृत्य)
विश्व-नृत्य की हैं यहां दो ताल।
सदा हम सुनते हैं काली के पदों का सञ्चरण
दुःख, पीड़ा तथा भाग्य की लयों को मापते हुए, होता है
यहां जीवन के संयोगों के भीषण तथा मधुर खेल का मूल्यांकन।
होता है साथ ही अवगुण्ठित दीक्षित का अग्नि-परीक्षण,
मृत्यु के आलिंगन के साथ क्रीड़ाशील है वीर आत्मन,
भाग्य के भयानक अखाड़े में हैं मल्ल बाहुयुद्धरत
और बलिदान है भागवत कृपा का एकाकी पथ।
गुह्य रहस्यों की कुञ्जी बने मनुष्य के दुःख-ताप,
काल के धुंधले वीरानों से निकला सत्य का संकीर्ण मार्ग,
भौतिक के स्तूप से आत्मा के सप्त द्वारों का जागरण,
उसकी दुःखान्त विषय-वस्तु के हैं सामान्य प्रयोजन।
किन्तु कब होगा प्रकृति में कृष्ण का नर्तन,
उनके प्रेम, हर्ष, हास्य, माधुर्य के कलामुख का सञ्चलन?
संदर्भ : श्रीअरविंद की कविता
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