जीव का सबसे अधिक विलक्षण अनुभव यह है कि जब वह दुख-क्लेश के रूप और उससे होने वाली आशंका की परवाह करना छोड़ देता है तो वह देखता है कि उसके इर्द-गिर्द कहीं दुख-क्लेश का नामोनिशान तक नहीं है। उसके बाद ही हम उन झूठे बादलों के पीछे भगवान को अपने ऊपर हँसते हुए सुनते हैं।
संदर्भ : विचार और सूत्र के प्रसंग में
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