जो कुछ दूसरे कर चुके हैं उसी को दोहराने के लिए हम यहां नहीं हैं। हम यहां एक नयी अभिव्यक्ति, एक नयी चेतना, एक नये जीवन के लिए अपने-आपको तैयार करने के लिए हैं। इसीलिए मैं तुम विद्यार्थियों से बातें कर रही हूं-अर्थात् उन सबसे जो सीखना चाहते हैं, जो अधिक सीखना
चाहते हैं, ज्यादा अच्छा सीखना चाहते हैं ताकि एक दिन तुम अपने-आपको नयी शक्ति के प्रति खोल सको, उसको भौतिक स्तर पर अभिव्यक्ति को सम्भव बना सको। तुम्हें यह न भूलना चाहिये कि यही हमारा कार्यक्रम है। अगर तुम यहां होने का सच्चा कारण समझना चाहते हो तो याद रखो
हमारा लक्ष्य है यथासम्भव अधिक-से-अधिक ऐसा पूर्ण यन्त्र बनना जो संसार में भगवान् की इच्छा को प्रकट कर सके। और अगर यन्त्र को पूर्ण बनना है तो तम्हें उसे परिष्कृत करना, शिक्षा देना और प्रशिक्षित करना होगा। तुम्हें उसे बंजर जमीन या अनगढ़ पत्थर के टुकड़े की तरह छोड़ नहीं देना चाहिये। हीरा अपना पूरा सौन्दर्य तभी दिखाता है जब उसे कलात्मक रूप से तराशा जाये। तुम्हारे साथ भी यही बात है। जब तुम यह चाहते हो कि तुम्हारी भौतिक सत्ता अतिमानसिक चेतना को अभिव्यक्त करने के लिए एक पूर्ण यन्त्र बन सके तो उसका पोषण करना होगा, उसे आकार देना
होगा, सुसंस्कृत बनाना होगा। उसके पास जो नहीं है वह लाना होगा और जो है उसे पूर्ण करना होगा।
संदर्भ : शिक्षा के ऊपर
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…