विजय की प्राप्ति ना केवल बलिदान से, न त्याग से, न ही निर्बलता से होती है। वह केवल एक ऐसे दिव्य ‘आनंद’ द्वारा मिलती है जो सामर्थ्य, सहनशीलता और परम साहस- स्वरूप है। यह आनंद अतिमानसिक शक्ति ही लाती है। यह हर एक चीज़ के त्याग करने और उससे पलायन करने की अपेक्षा कहीं अधिक कठिन है, यह असीम रूप से महान् वीरता की मांग करती है- किंतु विजय प्राप्त करने का यही एकमात्र उपाय है ।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५७-१९५८
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…