श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

विजय की प्राप्ति

विजय की प्राप्ति न केवल बलिदान से, न त्याग से, न ही निर्बलता से होती है। वह केवल ऐसे दिव्य ‘आनन्द’ द्वारा मिलती है जो सामर्थ्य, सहनशीलता और परम साहस-स्वरूप है। यह आनन्द अतिमानसिक शक्ति ही लाती है। यह हर एक चीज के त्याग करने और उससे पलायन करने की अपेक्षा कहीं अधिक कठिन है, यह असीम रूप से महान् वीरता की मांग करती है किन्तु विजय प्राप्त करने का यही एकमात्र उपाय है।

सन्दर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५७-१९५८

शेयर कीजिये

नए आलेख

रूपांतर का मार्ग

भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…

% दिन पहले

सच्चा ध्यान

सच्चा ध्यान क्या है ? वह भागवत उपस्थिती पर संकल्प के साथ सक्रिय रूप से…

% दिन पहले

भगवान से दूरी ?

स्वयं मुझे यह अनुभव है कि तुम शारीरिक रूप से, अपने हाथों से काम करते…

% दिन पहले

कार्य के प्रति मनोभाव

अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…

% दिन पहले

चेतना का परिवर्तन

मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…

% दिन पहले

जीवन उत्सव

यदि सचमुच में हम, ठीक से जान सकें जीवन के उत्सव के हर विवरण को,…

% दिन पहले