केवल वही वर्ष जो व्यर्थ में बिताये जाते हैं तुम्हें बूढ़ा बनाते हैं ।
जिस वर्ष में कोई प्रगति नहीं की गयी, चेतना में कोई वृद्धि नहीं हुई, पूर्णता की ओर कोई अगला क़दम नहीं उठाया गया वह वर्ष व्यर्थ में बिताया गया।
अपने जीवन को अपने-आपसे कुछ उच्च्तर और विशालतर वस्तु को चरितार्थ करने पर एकाग्र करो तो तुम्हें बीतते हुए वर्षों का भार कभी न लगेगा ।
संदर्भ : ‘शिक्षा’ के विषय में
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…