लॉर्ड ! मुझे बचाओ


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ

श्री पृथ्वीसिंह नाहर की पुत्रवधू राजसेना अपने तीन नन्हें-मुन्नों को लेकर आश्रम में रहती थीं। एक दिन उसकी तीन वर्षीया पुत्री लूसी अपनी सहेली गौरी पिंटों के घर खेलने गई । जब वह लौटकर आई उसके पास कुछ खिलौने थे। राजसेना ने समझा कि लूसी खिलौने चुराकर लाई है । वे बच्ची पर बहुत क्रुद्ध हुईं। लूसी ने बार-बार कहा कि उसने खिलौने चुराए नहीं हैं तथा गौरी ने स्वयं उसे दिये हैं, किन्तु राजसेना को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। उन्होने दंड देने के लिये बच्ची को एक कमरे में बंद कर दिया और स्वयं आश्रम ध्यान करने के लिये चली गई।

सूर्य ढल रहा था। कमरें में अंधेरा होने लगा। बच्ची बेहद डर गयी। अपने नन्हें-नन्हें हाथ जोड़कर उसने श्रीअरविंद को पुकारा, “लॉर्ड! मुझे बचाओ। अब मैं कभी खिलौने नहीं लाऊँगी।”  उन दिनों आश्रम में बालक, युवा, वृद्ध- सभी श्रीअरविंद को ‘लॉर्ड’ कहते थे।

दूर आश्रम में अपने एकांत कक्ष में श्रीअरविंद तक बच्ची की पुकार पहुँची। उन्होने दो साधकों को कहलवाया, “राजसेना की बच्ची किसी संकट में है। वह मुझे पुकार रही है। तुरंत जाकर देखो कि उसे क्या कष्ट है। ” दोनों साधक तत्काल दौड़ते हुए राजसेना के घर पहुंचे और बच्ची को कमरे से निकालकर सांत्व्ना दी।

श्रीमाँ को जब सारी घटना का पता चला तो वे उस अधेड़ साधिका पर बहुत क्रुद्ध हुई जो राजसेना के साथ रहती थीं। उन्होने उसे डांटते  हुए कहा, “राजसेना तो छोटी उम्र की है किन्तु तुम तो बड़ी हो, फिर तुमने यह कैसे होने दिया ?” इसके बाद उन्होने मासूम बच्ची को सजा देने के लिये राजसेना को भी डाँटा ।

राजसेना बहुत हठी थी । वह अपनी बात पर अड़ी रही और कहती रहीं कि बच्ची को दंड देना उचित था जिससे वह भविष्य में चोरी न करे। अंत में श्रीमाँ ने राजसेना से कहा कि वह बच्ची को उनके पास भेज दे। राजसेना ने मन ही मन सोचा, “बच्ची न तो पर्याप्त अँग्रेजी जानती है और न ही फ्रेंच, अतः माँ उससे बात कैसे करेंगी?” फिर भी उन्होने बच्ची को माँ के पास भेज दिया।

श्रीमाँ ने बहुत सरल अँग्रेजी में लूसी से कहा, “भगवान हमारे दिल में रहते हैं। यदि हम झूठ बोलते हैं तब वे हमें छोड़कर दूर, बहुत दूर, चले जाते हैं। फिर कुछ शेष नहीं रहता। ” लूसी सब समझ गई और जो कुछ श्रीमाँ ने समझाया था उसे अपनी माँ के सामने दोहरा दिया। बाद में ज्ञात हुआ कि बच्ची को खिलौने उसकी सहेली ने अपनी इच्छा से दिये थे। राजसेना को अत्यधिक पाश्चाताप हुआ।

(यह कहानी मुझे श्रीराजसेना ने सुनाई थी )

संदर्भ : श्रीअरविंद एवं श्रीमाँ की दिव्यलीला 


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