लेखन के विषय में


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ

क्या तुम्हें नहीं लगता कि इस संसार में कुत्सित वस्तुएँ पर्याप्त हैं और इसकी कोई आवश्यकता नहीं कि कोई व्यक्ति पुस्तकों में उनका चित्रण करे? यह चीज़ हमेशा ही मुझे आश्चर्य में डालती रही है, यहाँ तक कि जब में बच्ची थी तब भी–कि जीवन इतना गर्हित है, नीच, कष्टकर, यहाँ तक कि कभी-कभी घृणास्पद वस्तुओं से इतना भरा होता है, फिर भला जो चीजें पहले से हैं उनसे अधिक बुरी वस्तुओं की कल्पना करने से क्या लाभ? यदि तुम किसी अधिक सुन्दर वस्तु की, किसी अधिक सुन्दर जीवन की कल्पना करते तो वह कष्ट उठाने-लायक होता। जो लोग गन्दी बातें लिखने में सुख पाते हैं वे अपनी मन-बुद्धि की दरिद्रता ही सूचित करते हैं-यह सर्वदा ही मन-बुद्धि की दरिद्रता का लक्षण होता है। सच पूछो तो किसी उत्तेजनात्मक घटना या घोर विपत्ति के साथ समाप्त होने वाली कोई कहानी लिखने की अपेक्षा आदि से अन्त तक कोई सुन्दर कहानी सुनाना अनन्तग्ना कठिन है। बहुत-से लेखकों को यदि सुखपूर्वक, सुन्दरता के साथ समाप्त होने वाली कहानी लिखनी हो तो वे उसे लिखने में समर्थ नहीं होंगे-उसके लिए उनके पास पर्याप्त कल्पना नहीं होती। बहुत कम कहानियों का अन्त (मानव-चेतना को) ऊपर उठाने वाला होता है, लगभग सभी कहानियों का अन्त असफलता में होता है-इसका बड़ा सीधा-सा कारण है, ऊपर उठने की अपेक्षा नीचे गिरना बहुत अधिक आसान है। सच पूछो तो अपनी कहानी को महानता और गौरव के स्वर के साथ समाप्त करना, अपने नायक को आत्मातिक्रमण की चेष्टा करने वाला एक प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति बनाना बहुत अधिक कठिन है, क्योंकि उसके लिए स्वयं लेखक को भी प्रतिभाशाली व्यक्ति बनना होगा, और यह चीज़ प्रत्येक व्यक्ति को नहीं प्राप्त होती।

संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५०-१९५१


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