रोग के आक्रमणों का अनुभव

अगर हम केवल बाहरी भौतिक चेतना में ही रहें तो सामान्यतः हम यह नहीं जानते कि हम बीमार होने जा रहे हैं जब तक कि रोग के लक्षण शरीर में प्रकट नहीं हो जाते। परन्तु यदि हम आन्तरिक भौतिक चेतना को विकसित कर लें तो हम सूक्ष्म भौतिक वातावरण के विषय में अवगत हो जाते हैं एवं रोग की शक्तियों को उसके भीतर से अपनी ओर आते हुए अनुभव कर सकते हैं, यहां तक कि कुछ दूर से ही उन्हें महसूस कर सकते हैं, और यदि हम इसे करना सीख लें तो हम संकल्प के द्वारा अथवा अन्य उपायों से उन्हें रोक सकते हैं। हम अपने चारों ओर एक प्राणिक-भौतिक अथवा स्नायविक कवच का भी अनुभव कर सकते हैं जो शरीर से विकीर्ण होता है एवं उसे सुरक्षित रखता है, और हम उसे तोड़ कर घुसने की चेष्टा करने वाली विरोधी शक्तियों को अनुभव कर सकते और हस्तक्षेप करके उन्हें रोक सकते हैं या स्नायविक कवच को और भी मजबूत बना सकते हैं। अथवा हम रोग के लक्षणों को, जैसे ज्वर या सर्दी को, स्थूल शरीर में प्रकट होने से पहले सूक्ष्म-भौतिक आवरण में अनुभव कर सकते हैं और उन्हें शरीर में प्रकट होने से पहले रोक कर वहीं नष्ट कर सकते हैं।

 

संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र 

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