रूपान्तर की अवस्थाएँ


श्रीअरविंद का चित्र

भागवत चेतना की विभिन्न अवस्थाएँ होती हैं। रूपांतर की भी विभिन्न अवस्थाएँ होती है। पहली है, चैत्य रूपांतर, जिसमें चैत्य चेतना के द्वारा सभी कुछ भगवान के सम्पर्क में होता है। अगली अवस्था है, आध्यात्मिक रूपान्तर, जिसमें सब कुछ वैश्व चेतना में भगवान के अंदर विलीन हो जाता है। तीसरी है, अतिमानसिक रूपान्तर, जिसमें सब कुछ भागवत विज्ञानमय चेतना में अतिमानस बन जाता है। केवल इस अंतिम के द्वारा ही मन, प्राण तथा शरीर का पूर्ण रूपांतर होना आरम्भ हो सकता है – जिसे मैं  पूर्णता कहता हूँ।

संदर्भ :  श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)


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