सूक्ष्म लयात्मक प्रवाह में होता है मेरे श्वास का संचलन;

यह मेरे अंगों को दिव्य शक्ति से करता परिपूरन :

मैंने पिया है अनन्त को विराट की सुरा-समान ।

काल है मेरा नाट्य या मेरा कौतुकपूर्ण स्वप्न।

मेरी प्रकाशमय कोशिकाएँ हैं अब हर्ष का अग्निल आयोजन,

मेरी शाखारूप रोमांचित शिराओं में हो गया परिवर्तन,

वे बन गयीं आह्लाद की दूधिया सरणियां पारभासी पवित्र उस परम और अज्ञात के अन्तःस्रवण के लिए तत्पर ।

 

मैं अब नहीं हूँ रक्तमांस का उपजीवी आश्रित, 

प्रकृति और उसके धूसर विधान का सेवक-अनुगत:

मैं अब नहीं इन्द्रियों के संकुल पाश में बद्ध-ग्रस्त ।

मेरी सत्ता अपरिमेय दर्शन के लिए अदिगन्त होती है विस्तृत,

मेरी देह ईश्वर का यंत्र है प्रसन्न और प्राणवान,

मेरी आत्मा अमर्त्य प्रकाश का विशाल सूर्य महान ।

 

संदर्भ : श्रीअरविंद की कविता 

शेयर कीजिये

नए आलेख

आत्मा के प्रवेश द्वार

यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…

% दिन पहले

शारीरिक अव्यवस्था का सामना

जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…

% दिन पहले

दो तरह के वातावरण

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…

% दिन पहले

जब मनुष्य अपने-आपको जान लेगा

.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…

% दिन पहले

दृढ़ और निरन्तर संकल्प पर्याप्त है

अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…

% दिन पहले

देशभक्ति की भावना तथा योग

देशभक्ति की भावनाएँ हमारे योग की विरोधी बिलकुल नहीं है, बल्कि अपनी मातृभूमि की शक्ति…

% दिन पहले