इस परिपूर्ण शक्ति-चाप के अन्दर हमारा सीमित क्षेत्र निश्चित है
हमारे निरीक्षण और स्पर्श बोध की तथा विचार के अनुमान की सीमा है
और विरले क्षणों में परम-अज्ञेय का प्रकाश उदित हो उठता है
जो हमारे अन्तर में द्रष्टा और ऋषि को जगा देता है।
संदर्भ : “सावित्री”
मेरी प्यारी माँ, काश ! मैं अपनी अज्ञानी सत्ता को यह विश्वास दिला पाता कि…
तुम्हारा अवलोकन बहुत कच्चा है। ''अन्दर से'' आने वाले सुझावों और आवाजों के लिए कोई…
क्षण- भर के लिए भी यह विश्वास करने में न हिचकिचाओ कि श्रीअरविन्द नें परिवर्तन…
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…