उसके विवेक कीसाथिन एक संघर्ष-रत अविद्या है:
अपने कर्मों का परिणाम देखने की वह प्रतीक्षा करता है,
अपने विचारों की सत्यता को परखने की वह प्रतीक्षा करता है,
किन्तु क्या पायेगा या कब प्राप्त करेगा वह नहीं जानता;
अन्त तक वह जीवित रह पायेगा या नहीं, वह नहीं जानता,
या अन्त में प्राक्-ऐतिहासिक विशाल जन्तुओं समान नष्ट हो जायेगा
और इस पृथ्वी पर जहां का वह राजा था लोप हो जायेगा।
संदर्भ : “सावित्री”
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