संकुचित अनुभव की एक संकीर्ण झालर सम इस जीवन को
जो हमारी बांट में आया है, पीछे छोड़ देते हैं,
अपने लघु विहारों को, अपनी अपर्याप्त पहुंचों को तज देते हैं,
हमारी जीव-सत्ताएं इन महत्त्वपूर्ण एकाकी घड़ियों में
अविनाशी दिव्य-ज्योति के शान्त क्षेत्रों में रमण कर सकती हैं,
नीरव परा-शक्ति के गरुड़ाचारी सर्वद्रष्टा शिखरों पर
और अगाध परमानन्द के तीव्र शशि शीतल-ज्वाल सागरों पर
और आत्माकाश की प्रशान्त विशालताओं में रम सकती हैं।
संदर्भ : “सावित्री”
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…