रहस्य-ज्ञान – ११


महर्षि श्रीअरविंद घोष

उन घड़ियों में जब अन्तर के प्रकाश दीप जल उठते हैं
और इस जीवन के प्राणप्रिय अतिथि बाहर छूट जाते हैं,
हमारी चैत्य-सत्ता एकाकी बैठ निज गर्तों से सम्पर्क करती है।

संदर्भ : “सावित्री” 


0 Comments