रहस्य-ज्ञान – १०


श्रीअरविंद अपने कक्ष में

हमने जो सब सीखा है एक शंका भरे अनुमान जैसा है
सब सफलताएं एक पथ या एक अवस्था सम दीखती हैं
जिसका अग्रिम छोर हमारी द़ृष्टि से छिपा है,
एक अनायास घटित घटना या एक दैव नियति लगती है।

संदर्भ : “सावित्री”


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