योग के दृष्टिकोण से, तुम जो करते हो वह नहीं बल्कि तुम कैसे करते हो वह सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है ।


कर्म का इतना अधिक महत्त्व नहीं है , महत्त्व है उस चेतना का जिससे कर्म किया जाता है । इसलिए सब ठीक है, अपने- आपको यातना न दो । मेरा प्रेम हमेशा तुम्हारे साथ है ।


आध्यात्मिक जीवन के दृष्टिकोण से तुम जो करते हो उसका सबसे अधिक महत्त्व नहीं है, महत्त्व है तुम जिस तरह करते हो उसका और उस चेतना का जो तुम उसमें लगाते हो । भगवान् को हमेशा याद रखो और तुम जो कुछ करोगे वह ‘भागवत उपस्थिति’ की अभिव्यक्ति होगा । जब तुम्हारे सभी कर्म भगवान् को समर्पित होंगे तब ऐसे कोई कर्म न रहेंगे जो उच्च हों अथवा निम्न हों । सबका समान रूप से महत्त्व होगा-उन्हें समर्पण द्वारा दिया गया मूल्य ।

 

संदर्भ : माताजी के वचन (भाग -२)

शेयर कीजिये

नए आलेख

रूपांतर का मार्ग

भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…

% दिन पहले

सच्चा ध्यान

सच्चा ध्यान क्या है ? वह भागवत उपस्थिती पर संकल्प के साथ सक्रिय रूप से…

% दिन पहले

भगवान से दूरी ?

स्वयं मुझे यह अनुभव है कि तुम शारीरिक रूप से, अपने हाथों से काम करते…

% दिन पहले

कार्य के प्रति मनोभाव

अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…

% दिन पहले

चेतना का परिवर्तन

मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…

% दिन पहले

जीवन उत्सव

यदि सचमुच में हम, ठीक से जान सकें जीवन के उत्सव के हर विवरण को,…

% दिन पहले