भगवान के साथ सम्बंध स्थापित करना योग है, परम आनंद है तथा श्रेष्ठतम उपयोगिता है। मानवता की पहुँच के अंदर हम लोगों ने भगवान के साथ कुछ संबंधो को विकसित किया है। इन्हें हम प्रार्थना, पूजा, आराधना, बलिदान, चिंतन, श्रद्धा, विज्ञान, दर्शन कहते हैं। हमारी विकसित क्षमता से परे अन्य सम्बंध है, किंतु मानवता की पहुँच के अंदर उन्हें अभी विकसित करना बाक़ी है। वे सम्बंध उन विविध साधनाओं द्वारा प्राप्त किये जाते हैं जिन्हें हम सामान्यतया योग कहते हैं ।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड -१७)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
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सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…