योग का लक्ष्य श्रीअरविन्द या श्रीमाताजीके ‘जैसा’ बनना नहीं है। जो लोग इस विचार का पोषण करते हैं बड़ी आसानी से आगे के इस विचार पर पहुँच जाते हैं कि वे उनके बराबर और यहां तक कि उनसे अधिक बड़े बन सकते हैं। यह केवल अपने अहंका पोषण करना है ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग – २)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…