जब मैं योग के विषय में कुछ भी नहीं जानता, यह भी नहीं जानता कि क्या करना चाहिये, तब मैं योग कैसे कर सकता हूं भला?
योग करने के दो तरीके हैं—एक है, ज्ञान द्वारा, अपने ही प्रयास द्वारा करना, दूसरा है, माताजी पर श्रद्धा रखना। दूसरे तरीके में व्यक्ति को अपना मन, हृदय और बाकी सब कुछ माताजी को समर्पित कर देना होता है ताकि उनकी ‘शक्ति’ उस पर क्रिया कर सके। सभी कठिनाइयों में उन्हीं को पुकारो, श्रद्धा और भक्ति को बनाये रखो। शुरुआत में इसमें समय लगता है, चेतना को इस तरीके से तैयार करने में बहुधा बहुत अधिक समय लगता है, और उस दौरान बहुत सारी कठिनाइयां सिर उठा सकती
हैं, लेकिन अगर व्यक्ति डटा रहे तो एक समय ऐसा आता है जब सब कुछ तैयार हो जाता है, तब माताजी की शक्ति व्यक्ति की चेतना को पूरी तरह से भगवान् के प्रति खोल देती है, और तब, जो कुछ विकसित होना होता है, अन्दर-ही-अन्दर विकसित हो जाता है, आध्यात्मिक अनुभूतियां आती
हैं और उसके साथ-साथ ज्ञान का उदय होता है और भगवान् के साथ ऐक्य स्थापित हो जाता है।
संदर्भ : माताजी के विषय में
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…