भौतिक जगत में, हमें जो स्थान पाना है उसके अनुसार हमारे जीवन और कार्य के लिए जो कुछ अनिवार्य हो वह हमें मिल जाता है।
हम अपनी आन्तरिक सत्ता के साथ जितने अधिक सचेतन रूप से संपर्क में हों, उतने ही अधिक यथार्थ साधन हमारे लिए जुटा दिये जाते हैं।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…