श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

मैं तेरा होना चाहता हूँ

तुम्हारी चेतना की गहराइयों में तुम्हारे अंदर रहने वाले भगवान का मंदिर, तुम्हारा चैत्य पुरुष है। यही वह केंद्र है जिसके चारों ओर तुम्हारी सत्ता के इस सब विभिन्न भागों को, इन सब परस्पर-विरोधी गतियों को जाकर एक हो जाना चाहिये। तुम एक बार चैत्य पुरुष की चेतना को और उसकी अभीप्सा को पा लो तो इन संदेहों और कठिनाइयों को नष्ट किया जा सकता है। इस काम में कम या अधिक समय तो लगेगा, परंतु अंत में तुम अवश्य सफल होओगे। तुमने एक बार भगवान की ओर मुड कर कहा  : “मैं तेरा होना चाहता हूँ,” और भगवान ने “हाँ” कह दिया तो समस्त जगत तुमको उनसे अलग नहीं रख सकता। जब केंद्रीय सत्ता ने समर्पण कर दिया है तो मुख्य कठिनाई दूर हो जायेगी। बाह्य सत्ता तो एक जमी हुई पपड़ी की तरह है। साधारण लोगो में यह पपड़ी इतनी कठोर और मोटी होती है की इसके कारण वे अपने अंदर के भगवान से सचेतन नहीं हो पाते। परंतु यदि आन्तरपुरुष ने एक बार, क्षण-भर के लिए ही सही, यह कह दिया है : “मैं यहाँ हूँ और मैं तेरा हूँ” , तो मानो एक पूल बांध जाता है और यह पपड़ी धीरे-धीरे पतली-से-पतली पड़ती जाती है, और एक दिन आयेगा जब दोनों भाग पूर्ण रूप से जुड़ जाएँगे और आंतर तथा बाह्य दोनों एक हो जायेंगे।

संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९२९-१९३१

शेयर कीजिये

नए आलेख

हमारे बीच भागवत उपस्थिति

भगवान को अभिव्यक्त करने वाली किसी भी चीज को मान्यता देने में लोग इतने अनिच्छुक…

% दिन पहले

एक प्रोत्साहन

" जिस समय हर चीज़ बुरी से अधिक बुरी अवस्था की ओर जाती हुई प्रतीत…

% दिन पहले

आश्रम के दो वातावरण

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…

% दिन पहले

ठोकरें क्यों ?

मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…

% दिन पहले

समुचित मनोभाव

सब कुछ माताजी पर छोड़ देना, पूर्ण रूप से उन्ही पर भरोसा रखना और उन्हें…

% दिन पहले

देवत्‍व का लक्षण

श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…

% दिन पहले