मेरे आशीर्वाद बहुत भयंकर हैं । वे इसके लिए या उसके लिए, इस व्यक्ति या उस वस्तु के विरुद्ध नहीं होते । वे… या, अच्छा, मैं रहस्यवादी भाषा में कहूंगी :
वे इसलिए हैं कि प्रभु की ‘इच्छा ‘ पूरी शक्ति और पूरे बल के साथ चरितार्थ हो । इसलिए यह जरूरी नहीं है कि हमेशा सफलता मिले । अगर प्रभु की ऐसी ‘ इच्छा ‘ हो तो असफलता भी हो सकतीं है । ओर ‘इच्छा ‘ प्रगति के लिए है, मेरा मतलब आन्तरिक प्रगति से है । अतः जो कुछ भी होगा अच्छे-से- अच्छे के लिए ही होगा ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग – १)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…