सावित्री अग्रवाल ने १९४० के दशक के आरंभ में जब प्रथम बार श्रीअरविंद और श्रीमाँ के दर्शन किये तभी उन्होने निर्णय लिया कि उस दिन से उनके पति और परिवार का उन पर  कोई अधिकार नहीं रहेगा और उनकी स्वामिनी केवल श्रीमाँ है । एक दिन जब वे श्रीमाँ के दर्शन करने गयी तब अपने साथ हीरे की एक अंगूठी लें गयी । उन्हें अँग्रेजी नहीं आती थी। अतः श्रीमाँ की परिचारिका से कहकर श्रीमाँ को वह अंगूठी पहनाने की अनुमति मांगी। श्रीमाँ ने कुछ हंसी से कहा, “कही तुम मेरी अंगुली घायल न कर दो !” तब सावित्री ने परिचारिका से कहा, “मैं बहुत संभाल कर पहनाउंगी। ” श्रीमाँ के अनुमति देने पर सावित्री ने उन्हें बहुत कोमलता से वह अंगूठी पहनाई और हिन्दी में कहा, “अब आप मेरी पति हो गयीं। आज हमारा विवाह हुआ है।” इसके बाद वे अपने पति से पृथक रहने लगीं। एक बार उनके पति ने उनके ऊपर अधिकार जमाने की चेष्टा की तो सावित्री ने उत्तर दिया, “मैं तुम्हारें ऊपर न भोजन के लिए आश्रित हूँ न आवास के लिये। मेरी माँ और श्रीअरविंद मेरे पोषक हैं ।” एक बार उनके पति ने असंतुष्ट होकर श्रीमाँ से शिकायत की कि सावित्री उनकी कोई बात नहीं सुनती तथा वे उसे डांट दें। श्रीमाँ ने कहा, “मैं उसे डांट नहीं सकती। वह मेरी मित्र है। ”

जब श्रीमाँ ने शरीर त्याग दिया और सावित्री वृदधा और अक्षम हो गयीं तब भी, जब तक संभव हुआ, वे अपने धनी पुत्रों के स्थान पर अकेली आश्रम में ही रहीं।

(यह कथा स्वर्गीया सावित्री जी ने मुझे सुनाई थी )

संदर्भ : श्रीअरविंद एवं श्रीमाँ की दिव्य लीला 

शेयर कीजिये

नए आलेख

रूपांतर का मार्ग

भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…

% दिन पहले

सच्चा ध्यान

सच्चा ध्यान क्या है ? वह भागवत उपस्थिती पर संकल्प के साथ सक्रिय रूप से…

% दिन पहले

भगवान से दूरी ?

स्वयं मुझे यह अनुभव है कि तुम शारीरिक रूप से, अपने हाथों से काम करते…

% दिन पहले

कार्य के प्रति मनोभाव

अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…

% दिन पहले

चेतना का परिवर्तन

मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…

% दिन पहले

जीवन उत्सव

यदि सचमुच में हम, ठीक से जान सकें जीवन के उत्सव के हर विवरण को,…

% दिन पहले