कभी मत बुड़बुड़ाओं। जब तुम बुड़बुड़ाते हो तो तुम्हारें अंदर सब तरह की शक्तियाँ घुस जाती हैं और तुम्हें नीचे खींच लेती हैं। मुस्कुराते रहो। मैं हमेशा मज़ाक करती हुई दीखती हूँ पर यह केवल मज़ाक नहीं है। यह चैत्य से उत्पन्न विश्वास है। मुस्कान इस श्रद्धा को प्रकट करती है कि कोई चीज़ भगवान के विरुद्ध खड़ी नहीं रह सकती और अन्त में हर चीज़ ठीक निकलेगी।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग – २)
एक आन्तरिक विनम्रता अत्यंत आवश्यक है, किन्तु मुझे नहीं लगता कि बाहरी विनम्रता बहुत उपयुक्त…
चेतना के परिवर्तन द्वारा वस्तुओं की बाहरी प्रतीतियों से निकल कर उनके पीछे की सच्चाई…
नीरवता ! नीरवता ! यह ऊर्जाएँ एकत्र करने का समय है, व्यर्थ और निरर्थक शब्दों…
जब तक कि मनुष्य अपने अन्दर गहराई में नहीं जीता और बाहरी क्रिया-कलापों को बस…