मुक्ति की ओर जाने का मार्ग

अपनी दुर्बलताओं तथा मिथ्या गतियों को पहचानना और उनसे पीछे हटना मुक्ति की ओर जाने का मार्ग है।

किसी अन्य को नहीं, बल्कि अपने-आपको आंकना-जब तक हम अपने निश्चल मन तथा निश्चल प्राण से वस्तुओं को न देख सकें-एक उत्कृष्ट नियम है। और यह भी ध्यान में रखो कि बाहरी प्रतीतियों के आधार पर तुम्हारा मन जल्दबाजी में धारणा न बनाये और न ही तुम्हारा प्राण उस पर कार्य करने लगे।

आन्तरिक सत्ता में एक स्थान है जहां हम सर्वदा निश्चल बने रह सकते हैं, और वहां से सतही चेतना की बेचैनियों पर सन्तुलन तथा विवेक के साथ नजर  डाल सकते हैं और उसे परिवर्तित करने के लिए उस पर क्रिया कर सकते हैं। यदि तुम उस आन्तरिक सत्ता की निश्चलता में रहना सीख सको, तो तुम्हें अपना स्थायी आधार प्राप्त हो जायेगा।

संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र 

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