श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

मन और प्राण की प्रगति

अगर मन, प्राण और शरीर का पुनर्जन्म नहीं होता, केवल चैत्य ही फिर से जन्म लेता है तो मन, प्राण की प्रगति का अगले जन्म में कोई महत्व नहीं होता?

यह उसी हद तक होता है जहाँ तक कि इन भागों की प्रगति उन्हें चैत्य के निकट लाती है, यानी, जहाँ तक यह प्रगति सत्ता के इन भागों को उत्तरोत्तर चैत्य-प्रभाव में लाती है। क्योंकि वह सब जो चैत्य-प्रभाव में है और चैत्य के साथ एक हो गया है, वह बना रहता है और केवल वही बना रहता है।लेकिन, अगर चैत्य को अपने जीवन और अपनी चेतना का केन्द्र बनाया जाये और सारी सत्ता को उसी के चारों ओर संगठित किया जाये तो सारी सत्ता चैत्य-प्रभाव में आ जाती है और फिर वह बनी रह सकती है-यदि उसका बना रहना आवश्यक हो। वस्तुतः, यदि भौतिक शरीर को भी उसी प्रकार की गति दी जा सके-प्रगति की वही क्रियाएँ और आरोहण की वही क्षमता दी जा सके जो चैत्य पुरुष में है तो उसका विघटन ज़रूरी न होगा। लेकिन वही वास्तविक कठिनाई है।

संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५३

शेयर कीजिये

नए आलेख

आश्रम के दो वातावरण

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…

% दिन पहले

ठोकरें क्यों ?

मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…

% दिन पहले

समुचित मनोभाव

सब कुछ माताजी पर छोड़ देना, पूर्ण रूप से उन्ही पर भरोसा रखना और उन्हें…

% दिन पहले

देवत्‍व का लक्षण

श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…

% दिन पहले

भगवान की इच्छा

तुम्हें बस शान्त-स्थिर और अपने पथ का अनुसरण करने में दृढ़ बनें रहना है और…

% दिन पहले

गुप्त अभिप्राय

... सामान्य व्यक्ति में ऐसी बहुत-से चीज़ें रहती हैं, जिनके बारे में वह सचेतन नहीं…

% दिन पहले