जब तुम भौतिक जीवन की कोई चीज़ बदलना चाहो, चाहे वह चरित्र हो या अंगों की संचालन-क्रिया हो या आदतें, तुम्हें स्थिर अधव्यसाय के साथ वही चीज़, उसी तीव्रता के साथ सौ बार करने के लिए तैयार रहना चाहिये जिस तीव्रता के साथ तुमने पहली बार प्रयास किया था, और इस तरह करना चाहिये मानों पहले कभी न किया हो।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५५
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
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मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…