अगर व्यक्ति के अन्दर भागवत कृपा पर श्रद्धा है कि भागवत कृपा उस पर नजर रखे हुए है और चाहे कुछ क्यों न हो जाये, भागवत कृपा तो है ही, उसकी निगरानी कर रही है, व्यक्ति इसे हमेशा सारे जीवन रख सकता है और यह हो तो सभी खतरों में से गुजर सकता है, सब प्रकार की कठिनाइयों का सामना कर सकता है और कोई उसका बाल भी बांका न कर सकेगा, क्योंकि उसे श्रद्धा है और भागवत कृपा उसके साथ है। यह अनन्तगुना शक्तिशाली, अधिक सचेतन, और अधिक स्थायी शक्ति है जो तुम्हारे शारीरिक गठन की अवस्था पर निर्भर नहीं होती, जो भागवत कृपा के सिवा किसी और पर निर्भर नहीं होती और इसलिए सत्य का सहारा लिये रहती है और कोई चीज उसे हिला नहीं सकती।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…