‘भागवत उपस्थिति’ दिन-रात सतत मौजूद है ।
चुपचाप अन्दर की ओर मुड़ना काफी है और हम उसे पा लेंगे ।
संदर्भ :माताजी के वचन (भाग – २)
‘भागवत उपस्थिति’ दिन-रात सतत मौजूद है ।
चुपचाप अन्दर की ओर मुड़ना काफी है और हम उसे पा लेंगे ।
संदर्भ :माताजी के वचन (भाग – २)
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