केवल ‘भागवत इच्छा’ पर निर्भर रहने का और उसे अपने द्वारा मुक्त रूप से काम करने देने का समय आ गया है।
मैं दोहराती हूं, आखिर समय आ गया है कि तुम अब अपनी तुच्छ इच्छा पर निर्भर न रहो, सारे काम को ‘भागवत इच्छा’ के हाथों में सौंप दो, अपने द्वारा उसे काम करने दो। केवल अपने मन और संवेदनाओं द्वारा नहीं बल्कि मुख्य रूप से शरीर द्वारा। अगर तुम इसे सचाई के साथ करोगे तो ये सब शारीरिक असंगतियां विलीन हो जायेंगी और तुम अपने काम के लिए सशक्त और उपयुक्त हो जाओगे।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग -३)
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…
देशभक्ति की भावनाएँ हमारे योग की विरोधी बिलकुल नहीं है, बल्कि अपनी मातृभूमि की शक्ति…