केवल ‘भागवत इच्छा’ पर निर्भर रहने का और उसे अपने द्वारा मुक्त रूप से काम करने देने का समय आ गया है।
मैं दोहराती हूं, आखिर समय आ गया है कि तुम अब अपनी तुच्छ इच्छा पर निर्भर न रहो, सारे काम को ‘भागवत इच्छा’ के हाथों में सौंप दो, अपने द्वारा उसे काम करने दो। केवल अपने मन और संवेदनाओं द्वारा नहीं बल्कि मुख्य रूप से शरीर द्वारा। अगर तुम इसे सचाई के साथ करोगे तो ये सब शारीरिक असंगतियां विलीन हो जायेंगी और तुम अपने काम के लिए सशक्त और उपयुक्त हो जाओगे।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग -३)
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…