जिस चीज़ से मनुष्य डरता है, वह तब तक आते रहने की प्रवृत्ति रखती है, जब तक की मनुष्य सीधे उसके सामने ताकने की और अपनी झिझक जीतने की क्षमता नहीं प्राप्त कर लेता । मनुष्य को अपना आधार भगवान पर रखना सीखना चाहिए और भय को जीत लेना चाहिए ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग -४)
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…