जिस चीज़ से मनुष्य डरता है, वह तब तक आते रहने की प्रवृत्ति रखती है, जब तक की मनुष्य सीधे उसके सामने ताकने की और अपनी झिझक जीतने की क्षमता नहीं प्राप्त कर लेता । मनुष्य को अपना आधार भगवान पर रखना सीखना चाहिए और भय को जीत लेना चाहिए ।

संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग -४)

शेयर कीजिये

नए आलेख

साधना में प्रगति

अगर तुम्हारी श्रद्धा दिनादिन दृढ़तर होती जा रही है तो निस्सन्देह तुम अपनी साधना में…

% दिन पहले

आध्यात्मिक जीवन की तैयारी

"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…

% दिन पहले

उदार विचार

मैंने अभी कहा था कि हम अपने बारे में बड़े उदार विचार रखते हैं और…

% दिन पहले

शुद्धि मुक्ति की शर्त है

शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…

% दिन पहले

श्रीअरविंद का प्रकाश

मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…

% दिन पहले

भक्तिमार्ग का प्रथम पग

...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…

% दिन पहले