स्वयं मुझे यह अनुभव है कि तुम शारीरिक रूप से, अपने हाथों से काम करते हुए भी पूरी तरह ध्यानस्थ और भगवान के साथ एक्य में रह सकते हो। लेकिन स्वभावतः: इसके लिए अभ्यास कि जरूरत होती है। इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज़ जिससे बचना चाहिए वह है व्यर्थ की बक बक। काम नहीं, व्यर्थ की बक-बक हमें भगवान से दूर ले जाती है ।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…