भगवान के तरीके मानव-मन के तरीकों जैसे नहीं है या हमारे आदर्शों के अनुरूप नहीं होते और उनके विषय में निर्णय करना या भगवान के लिए यह निर्धारित करना कि उन्हें क्या करना या क्या नहीं करना चाहिए, असंभव है , क्योकि हम जैसा जान सकते है उससे कही अच्छा भगवान जानते है। यदि हम ज़रा भी भगवान को मानते है तो यथार्थ बुद्धि और भक्ति दोनों ही मुझे सुस्पष्ट श्रद्धा और समर्पण-भाव की मांग करने में एकमत प्रतीत होती है।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…