ऐसी आत्माएँ होती हैं जो अपने परिवेश के विरुद्ध विद्रोह करती हैं और ऐसा लगता है कि वे किसी और ही युग, किसी और ही देश की हैं। उन्हें अपनी पसंद का अनुसरण करने दो। लेकिन कृत्रिम रूपों में ढाले जाने पर अधिकतर लोग क्षीण, रिक्त और बनावटी बन जाते हैं। भगवान की व्यवस्था है कि अमुक लोग किसी राष्ट्र-विशेष, देश, युग, समाज के हों। वे अतीत के बालक, वर्तमान के भोक्ता और भविष्य के निर्माता हों। अतीत हमारी नींव है, वर्तमान हमारा उपादान है, भविष्य हमारा लक्ष्य और शिखर है। राष्ट्रीय शिक्षा-पद्धति में हर एक को अपना उचित और स्वाभाविक स्थान मिलना चाहिये।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड-१)
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…