एक फकीर रात सोया। उस ने एक सपना देखा कि वह स्वर्ग पहुंच गया, और बड़ी भीड़— भड़क्का है; स्वर्ग बड़ा सजा है और बड़ा जुलूस निकल रहा है—शोभायात्रा!
उस ने पूछा—वह भी खड़ा हो गया भीड़ में —कि क्या बात है? किसीने कहा, आज भगवान का जन्मदिन है, किसी राहगीर ने कहा, उत्सव मनाया जा रहा है। उस ने कहा अच्छे भाग्य मेरे कि ठीक दिन आया स्वर्ग।
जुलूस निकलते हैं। निकले रामचंद्र जी धनुष—बाण लिए और लाखों—करोड़ों लोग उनके पीछे। फिर निकले मुहम्मद अपनी तलवार लिए, और लाखों—करोड़ों लोग उनके भी पीछे। और फिर निकले बुद्ध, और फिर निकले महावीर, और जरथुस्त्र, और निकलते गए, निकलते गए और आखिर मे जब सब निकल गए तो एक आदमी एक बूढ़े—से मरियल—से घोड़े पर सवार निकला। जनता भी जा चुकी थी, लोग भी जा चुके थे, उत्सव समाप्त होने के करीब था, आधी रात हो गयी, इस फकीर को इस आदमी को देख कर हंसी आने लगी कि यह भी सज्जन खूब हैं, यह काहे के लिए निकल रहे हैं अब! और इनके पीछे कोई भी नहीं।
उस ने पूछा, आप कौन हैं और घोड़े पर किसलिए सवार हैं? और यह कैसी शोभायात्रा है, आपके पीछे कोई नहीं! उस ने कहा, मैं क्या करूं, मैं भगवान हूं। कुछ लोग हिंदुओं के साथ हो गए हैं, कुछ बौद्धों के साथ, कुछ ईसाइयों के साथ, कुछ मुसलमानों के साथ, कोई भी नहीं, मैं अकेला हूं। मेरा जन्मदिन मनाया जा रहा है, तुम्हें मालूम नहीं?
घबड़ाहट मे फकीर की नींद खुल गयी।
सन्दर्भ और चित्र: इन्टरनेट से साभार
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