जब तुम ध्यान में बैठो तो तुम्हें बालक की तरह निष्कपट और सरल होना चाहिये। तुम्हारा बाह्य मन बाधा न दे, तुम किसी चीज़ की आशा न करो, किसी चीज़ के लिए आग्रह न करो। एक बार यह स्थिति आ जाये तो बाकी सब तुम्हारी गहराइयों में स्थित अभीप्सा पर निर्भर करता है। और अगर तुम भगवान को बुलाओ तो उनका उत्तर भी मिलेगा।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
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पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…