हमेशा भगवान् का स्वागत करने के लिए तैयार रहो, ‘वे’ किसी भी क्षण तुम्हारे यहां आ सकते हैं। और अगर कभी ‘वे’ तुमसे निश्चित मिलन-स्थल पर प्रतीक्षा करवाते हैं तो निश्चय ही यह कोई कारण नहीं है कि तुम स्वयं देर करो।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…