भगवान हृदय में देखते हैं और जब समझते हैं कि अब ठीक समय आ गया है, तब पर्दा हटा देते हैं। तुमने भक्ति के सिद्धान्त पर बल दिया हैं कि हमें केवल उनका नाम लेने की जरूरत है और उन्हें अवश्य उत्तर देना चाहिये। उन्हें तुरंत वहाँ आ जाना चाहिये। शायद, किन्तु यह किसके लिए सत्य है ? निस्संदेह एक विशेष प्रकार के भक्त के लिए जो नाम की शक्ति को अनुभव करता है, जिसमें नाम का आवेग है और जिसे वह अपनी पुकार में व्यक्त करता है। यदि कोई वैसा भक्त हो तब तत्काल उत्तर आ सकता है – यदि नहीं; तब हमें वैसा बनना पढ़ेगा। तभी उत्तर आयेगा।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
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अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…