…पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो जाती है वही से शुरू होती है सच्ची भक्ति ; वह गंभीर होकर प्रगाढ़ दिव्य प्रेम का रूप धारण कर लेती है; उस प्रेम का फल होता है भगवान के साथ हमारे सम्बन्धों की घनिष्ठता का हर्ष; घनिष्ठता का हर्ष मिलन के आनंद में परिणत हो जाता है ।
संदर्भ : योग समन्वय
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