केवल वही वर्ष जो व्यर्थ में गुजरते हैं, तुम्हें बूढ़ा बना देते हैं ।
वह वर्ष व्यर्थ जाता है जिसमें कोई प्रगति नहीं होती, चेतना की कोई वृद्धि नहीं होती, पूर्णता की ओर कोई पग नहीं उठाया जाता ।
अपना जीवन किसी उच्चतर और बृहत्तर चीज़ की उपलब्धि की ओर निवेदित कर दो तो तुम्हें कभी गुजरते हुए वर्षों का भार अनुभव न होगा ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
अगर तुम्हारी श्रद्धा दिनादिन दृढ़तर होती जा रही है तो निस्सन्देह तुम अपनी साधना में…
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…