मधुर माँ,
समय-समय पर बुरे विचारों का उफान आ जाता है; मेरा मन आवेशों का दलदल बन जाता है जिसमें मैं एक कीड़े की तरह लोटता हूँ। कुछ समय बाद मैं जाग जाता हूँ और अपने विचारों पर पछताता हूँ । लेकिन इस तरह का संघर्ष चलता रहता है। कृप्य सहायता कीजिये कि मैं इसमे से बाहर निकाल सकूँ।
तुम्हें बुरे विचारों के साथ तब तक लड़ते जाना चाहिये जब तक पूर्ण विजय न मिल जाये। मेरी सहायता हमेशा तुम्हारें साथ है, और मेरे आशीर्वाद भी ।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
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अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
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आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…