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बुरें विचारों का उफान

मधुर माँ,

समय-समय पर बुरे विचारों का उफान आ जाता है; मेरा मन आवेशों का दलदल बन जाता है जिसमें मैं एक कीड़े की तरह लोटता हूँ। कुछ समय बाद मैं जाग जाता हूँ और अपने विचारों पर पछताता हूँ । लेकिन इस तरह का संघर्ष चलता रहता है। कृप्य सहायता कीजिये कि मैं इसमे से  बाहर निकाल सकूँ।

तुम्हें बुरे विचारों के साथ तब तक लड़ते जाना चाहिये जब तक पूर्ण विजय न मिल जाये। मेरी सहायता हमेशा तुम्हारें साथ है, और मेरे आशीर्वाद भी ।

संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)

 

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